मानस में पर्यावरणीय विवेचन
Authors: डॉ. रेखा पाण्डेय
Country: India
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Abstract: गोस्वामी तुलसीदास कृत अनुपम श्रीरामचरितमानस केवल एक धार्मिक महाकाव्य नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक, एवं पर्यावरणीय चेतना से परिपूर्ण ग्रंथ भी है। इसमें प्रकृति, पर्यावरण एवं जैव विविधता के महत्व को बड़े ही सुंदर एवं मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। वर्तमान समय में जब पर्यावरणीय असंतुलन, जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता के संकट गहरे होते जा रहे हैं, तब रामचरितमानस में उल्लिखित पर्यावरणीय दृष्टिकोण अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है।इस ग्रंथ में वन, वृक्ष, नदियाँ, पर्वत, पशु-पक्षी आदि के प्रति आदर एवं संरक्षण का भाव निहित है। श्रीराम का वनगमन केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के सामंजस्य का प्रतीक भी है। चित्रकूट, दंडकारण्य, पंचवटी आदि वनों का वर्णन इस तथ्य को पुष्ट करता है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण एक महत्त्वपूर्ण तत्व था। तुलसीदास ने विभिन्न प्रसंगों में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की बात कही है, जैसे केवट प्रसंग, शबरी आश्रम, हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाना आदि। वर्तमान संदर्भ में, जब पर्यावरण प्रदूषण, वनों की कटाई एवं जल संकट जैसी समस्याएँ चरम पर हैं, तब रामचरितमानस का संदेश हमें प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की प्रेरणा देता है। इस ग्रंथ के अध्ययन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें न केवल प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करना चाहिए, बल्कि उनकी रक्षा एवं संवर्धन की भी जिम्मेदारी उठानी चाहिए। इस प्रकार रामचरितमानस की पर्यावरणीय चेतना आधुनिक पर्यावरणीय आंदोलनों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बन सकती है।
Keywords: रामचरितमानस, पर्यावरणीय चेतना, तुलसीदास, वन संरक्षण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, प्रकृति, आधुनिक संदर्भ, सतत विकास।
Paper Id: 232340
Published On: 2024-06-04
Published In: Volume 12, Issue 3, May-June 2024